शनिवार, 5 जुलाई 2008

विदेश नीति से तय होती घरेलू राजनीति

देश में मंहगाई आसमान छू रही है, जिसको लेकर ज्यादा चर्चा नहीं है। अगर चर्चा का कोई मुद्दा है तो अभी है अमेरिका के साथ परमाणु करार। इसको लेकर जो बवाल पिछले कुछ दिनों से खड़ा हुआ है, वह और अधिक बढ़ता नजर आ रहा है।

इससे न सिर्फ सरकार के भाग्य को लेकर सवाल खड़ा हो गया है बल्कि आने वाले चुनावों को देखते हुए पार्टियों के बीच गठजोड़ भी शुरू हो गया है।

एक तरफ जहां कांग्रेसकी विरोधी समाजवादी पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के साथ आती दिख रही है। वहीं दूसरी तरफ यूनाइटेड नेशनल प्रोग्रेसिवएलाइंस (यूएनएपी) ने यह साफ कर दिया है कि अगर समाजवादी पार्टी करार का समर्थन करती है तो उसके लिए यूएनएपी में कोई जगह नहीं है, हालांकि समाजवादी पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि वह परमाणु करार मुद्दे पर सरकार के साथ है।

इस राजनीतिक खेमेबंदी के बीच भारतीय जनता पार्टी ने भी यूएनएपी को अपने करीब लाने का प्रयास तेज कर दिया है। भाजपा नेता जसवंत सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी ने यूएनपीए को केंद्र में सरकार बनाने के लिए कहा था। भाजपा ने बहुजन समाज पार्टी से भी नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी है।

वाम दलों का भी परमाणु करार पर इतने तीखे विरोध का कारण उसका अपना वोट बैंक ही है। वाम दलों की नीति हमेशा से ही अमेरिका विरोधी रहा है। डील मुद्दे पर वह सरकार का साथ देकर किसी सैद्धांतिक उलझव में नहीं पड़ना चाहता। आने वाले चुनावों में वह ऐसे सैद्धांतिक उलझव के साथ कतई नहीं जाना चाहेगा, जिसका वह हमेशा से विरोध करता रहा है।

जिस परमाणु करार के विरोधी इसकी मौत का फरमान लिखने के लिए बेताब था वह फिर से पुनर्जीवित होता दिख रहा है,साथ ही यह घरेलू राजनीति को भी तय कर रहा है। समस्त पार्टी इसी को केंद्र में रखकर अपना समीकरण बिठाने में लग गए हैं।

1 टिप्पणी:

Som ने कहा…

Yes. I do agree with your point of view. Present Govt. has working more to fulfill it's commitment to Bush than solving local problem like inflation.