मंगलवार, 6 जनवरी 2009

जल्द ही "गांधी" हो जाएंगे "गैंधी"

मैं पिछले कुछ दिनों से एक प्रयोग कर रहा हूं। प्रयोग कुछ ऐसा कि जिससे पता चले कि हम हिन्दुस्तानी किसी की कॉपी करने में कितने उस्ताद होते हैं। पहले मैं आपको यह बता दूं कि यह प्रयोग है क्या।

मैं अपने मित्रों या जहां कहीं भी मौका मिलता है एक सवाल पूछता हूं। मैं उनसे कहता हूं कि राम ने रावण को मारा, इसको इंग्लिश में बोलो। और वे बिना एक मिनट भी लिए बोलते हैं "रावणा" किल्ड बाय "रामा" मुझे पता है कि आपमें से कई लोग सोच रहे होंगे कि इसमें गलत क्या है।

यह तकनीकी रूप से गलत तो है ही साथ ही हिन्दुस्तानियों की कॉपी करने की आदत का भी जबरदस्त उदाहरण है। क्योकि अंग्रेज राम या रावण नहीं बोल पाते इसलिए वो रामा और रावणा बोलेंगे तो हम भी ऐसा ही करेंगे। और ऐसा हो भी क्यों नहीं हमारे यहां ही तो डुप्लीकेट बनने का फैशन जो है। हमारे यहां हर लोकप्रिय शख्सियत का कोई न कोई डुप्लीकेट जरूर मिल जाता है। अब क्योंकि अंग्रेजी अपनी भाषा तो है नहीं इसलिए वो जैसा बोलते है वैसा ही बोलो, जैसा वो करते हैं वैसा ही करो। मैं यहां करने के बारे में ज्यादा नहीं लिखूंगा नहीं तो विषय से भटक जाउंगा।

इस तकनीकी खामी के साथ आम आदमी बोलें तो समझ में आता है, लेकिन हमारे भारतीय न्यूज चैनल भी कुछ ऐसा ही करते हैं। ए रिपोर्ट फ्रॉम "बरखा" को बोलेंगे ए न्यूज रिपोर्ट फ्रॉम "बारखा"। इसी तरह इंग्लिश न्यूज चैनल के लिए कसाब हो गया "कसब।

किसी नई भाषा को हम अपने सहूलियत के लिए सीखते हैं, न कि अपनी खुद की जुबान बिगाड़ने के लिए। नाम का उसी तरह से उच्चारण होना चाहिए जैसा कि वो है। इसलिए राम, राम हैं न कि रामा। इससे किसी को इनकार नहीं हो सकता कि इंग्लिश हमारी भाषा नहीं है, लेकिन आज के समाज में यह बहुत ही उपयोगी है। खासकर भारत जैसे बहुभाषी देश के लिए जहां हर तीन किमी पर बोली बदल जाती है वहां कोई ऐसी भाषा जरूर होनी चाहिए जो सब समझ सकें और सब बोल सकें। हिंदी ने इस रूप में काफी प्रगति की है लेकिन इंग्लिश के ग्लोबल होने और रोजगारोन्मुख होने से इसकी उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। यह अलग बात है कि हिन्दी को भी इस रूप में प्रचारित किया जा सकता था। आप अगर फ्रांस, इटली, जर्मनी, रुस जाएं तो आपको वहां बात करने के लिए उनकी भाषा को सीखना पड़ेगा। मेरा एक दोस्त कुछ दिनों पहले फ्रांस गया था और वह बताता है कि वहां बस एक दो न्यूज चैनल इंग्लिश में है नहीं तो सारे फ्रेंच चैनल हैं। यह होता है अपनी भाषा से लगाव।

लेकिन भारत में ऐसी आशा नहीं कि जा सकती। जब यूरोप में राष्ट्रों का एकीकरण हुआ तो इसका आधार ही या तो भाषा बनी या एक जाति। राष्ट्र की परिकल्पना ही यूरोप में इसी तरह से विकसित हुई। राष्ट्र का मतलब एक जाति, एक धर्म और एक भाषा। लेकिन भारत जैसे बहुसांस्कृतिक, बहुभाषी और बहुधर्मी देश में ऐसा सोचना भी मूर्खता होगी। लेकिन कम से कम हिंदी को मिली राष्ट्रीय भाषा के दर्जे का सम्मान तो करना ही चाहिए। मेरा यह सब लिखने का यह कतई ही उद्देश्य नहीं है कि मैं इंग्लिश विरोधी हूं, इंग्लिश बोलें लेकिन हिन्दुस्तानियों की तरह। मैं हिन्दुस्तानी इसलिए भी कह रहा हूं कि दक्षिण भारतीय लोग इंग्लिश दक्षिण भारतीयों की तरह बोलें, उत्तर भारतीय, उत्तर भारतीयों की तरह न कि अमेरिकी और ब्रिटिशर्स की तरह। कम से कम जो चीज बिल्कुल ही हिन्दुस्तानी है और हिन्दुस्तानी ही उसको जानते हैं कि कैसे बोला जाए वह तो बिल्कुल भी नहीं। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब भारतीयों के लिए भी गांधी हो जाएंगे गैंधी जैसे कि गांगुली हो गए गैंगुली, बरखा हो गई बारखा, कसाब हो गया कसब, द्रविड गए द्राविड। अब आप कहिए..............

2 टिप्‍पणियां:

BROADEN HORIZON ने कहा…

किसी भी भाषा का चुनाव हम अपने सहुलियत के अनुसार करते हैं। यह सच है कि बोलते समय शब्दों का उच्चारण अधिकांशतः उसी भाषा में ज्यादा अच्छा लगता है, जिस भाषा को हम बोलते हैं। परंतु इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी क्षेत्र विशेष की भाषा को बोलते वक्त उस क्षेत्र के टेक्नीकल टोन आ ही जाते हैं। उदाहरण के तौर पर सर्वे में यह देखा गया है कि उत्तर भारत के लोगों को बीपीओ कंपनी में ज्यादा तवज्जो दी जाती है, इसका पऱ्मुख कारण यही है कि उत्तर भारतीय लोगों के अंगऱेजी उच्चारण ज्याद सही होते हैं और यूएस और इंग्लैंड के लोग इसे बखूबी समझ भी जाते हैं। जबकि भारत के अन्य क्षेत्रों जैसे उत्तरपूर्वी भारत और दक्षिणी भारत के लोगों के अंगऱेजी उच्चारण में उनका क्षेत्रीय टोन आ जाता है। दरअसल यह उदाहरण हम इसलिए दे रहे हैं क्योंकि राम को रामा या फिर रावण को रावणा हम अंगऱेजी बोलते समय करते हैं न कि हिंदी बोलते समय। कसाब को कसब इंग्लिश चैनल वाले बोलते हैं न कि हिंदी चैनल। एक सबसे अच्छा उदाहरण हम यहां देना चाहेंगे। इंग्लिश ड्रामा खेलते समय मां सीता का संबोधन मदर सीता के रूप में नहीं किया जाता। इसका संबोधन मां सीता ही किया जाता है। इसी पऱकार स्वामी का उच्चारण स्वामी ही किया जाता है न कि डियर राम। इस आधार पर तो अंगऱेजी भाषा के साथ अन्याय करना कहा जा सकता है। परंतु एसा नहीं है, हम अपने सुविधा के अनुसार और क्षेत्रीय पऱभार के आधार पर किसी भाषा का पऱयोग करते हैं। चुकि हिंदी हमारी मातृभाषा है अतः इसका पऱयोग हमें अधिकाधिक करनी चाहिए,परंतु सुधार और स्वीकृति के रूप में न कि इसे कठिन बनाकर।

Vivek Rastogi ने कहा…

Bahut achchhe, Sujit... Idea bhi achchha hai, aur prastutikaran bhi, lekin abhi kaafi kuchh likha ja sakta tha, is vishay par...

Karnataka, Kerala se lekar जैम्मू एंड काश्मिर tak...