जम्मू कश्मीर में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को हस्तांतरित जमीन को लेकर उपजा विवाद आखिरकार गुलाम नबी सरकार की गले की फांस बन ही गया। कांग्रेस की समर्थक पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। हालांकि सरकार के वैसे भी कुछ ही महीने बचे थे, लेकिन जिस मुद्दे पर समर्थन वापसी की घोषणा हुई है वह न तो जम्मू-कश्मीर के लिए हित में है और न ही देश हित में। क्योंकि ऐसे कदमों से समाज बंटेगा ही। लोगों में सांप्रदायिक भावना भड़काकर राजनीतिक लाभ लेने से आने वाले समय में जम्मू कश्मीर को और भी बुरे दिन देखने को मिल सकते हैं।
मामला यह है कि श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जंगल की भूमि प्रदान की गई, जिसका प्रयोग अमरनाथ यात्रा के समय बेस कैंप के रुप में होना था। बोर्ड को वहां कोई स्थाई निर्माण की इजाजत नहीं थी। इस मामले का विरोध इस आधार पर शुरू हुआ कि इससे राज्य का जनांकिकीय संतुलन (Demographic Balance) बिगड़ जाएगा। इस विरोध का दूसरा आधार पर्यावरणीय है।
सबसे पहली बात तो ये कि इस अस्थाई बेस कैंप से जम्मू कश्मीर के जनांकीकिय संतुलन पर कैसे प्रभाव पड़ेगा। और अगर पड़ता भी हो तो क्या जम्मू-कश्मीर सिर्फ मुसलमानों का है। एक तरफ तो लाखों की संख्या में कश्मीरी हिन्दु राज्य के बाहर रहने को विवश हैं, दूसरी तरफ वहां की कौम का यह रवैया। तो किस मुंह से सरकार या वहां के लीडरान कहते हैं कि कश्मीरी हिन्दु कश्मीर आकर बसें। जब एक अस्थाई बेस कैंप पर इतना बवाल होगा तो कैसे वे लोग हिन्दुओं के स्थाई निवास को सहन कर पाएंगे।
इस मामले में जो सबसे बुरी बात हुई है वह है इस प्रकार के आंदोलनों को राजनीतिक समर्थन। ऐसा करके ये पार्टियां दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक दूरी को बढा ही रहे हैं, जो कतई देश हित में नहीं है। किसी मुद्दे पर आम लोग आम व्यवहार करते ही हैं, लेकिन समाज के प्रबुद्ध वर्ग की यह जिम्मेवारी बनती है कि वे हमेशा सही बात कहते रहें, उससे परहेज न करें। अपने क्षुद्र राजनीतिक फायदे के लिए इस प्रकार का व्यवहार घातक है।
मैने अभी हाल ही में एक किताब पढ़ी `India : After Ayodhya' । इस किताब की कुछ बातों ने मुझे प्रभावित किया। इसमें लेखक ने लिखा है कि आज तक के इतिहास में अगर एक जाति ने दूसरी जाति पर जुल्म ढाया है तो बाद की पीढ़ि ने इसके लिए दूसरी जाति से माफी मांगी है। एकमात्र मुसलमान ही ऐसी जाति है जो अपने किए पर कभी शर्मिंदा नहीं हुई। जर्मन जाति ने यहूदियों पर जुल्म ढाया, ब्रिटन ने रेड इंडियन्स पर जुल्म ढाया और अमेरिका से लगभग उन्हें समाप्त ही कर दिया। लेकिन इस सब जातियों की बाद की पीढियों ने अपने पूर्वजों के इस कृत्य के लिए माफी मांगी। हालांकि इसके लिए आज की पीढि बिल्कुल भी जिम्मेवार नहीं थी।
अब मुसलमानों पर आइए। मध्यकाल में जब इस धर्म का प्रसार हो रहा था तो मुसलमान जाति ने कई जातियों पर जुल्म ढाए और उन्हे मुसलमान बनाया। इस बात से किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस्लाम का प्रसार ही खून खराबे से हुआ है, यही जेहाद है अर्थात धर्म युद्ध। भारत में भी मुसलमान आए और बड़े पैमाने पर नरसंहार हुए। आप कह सकते हैं कि ये सभी युद्ध राजनीतिक युद्ध थे। मैं भी इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते यह जानता हूं कि ये युद्ध राजनीतिक थे। लेकिन कई ऐसे आक्रमणकारी भी आए जिनका उद्देश्य सिर्फ लूटपाट करना ही था। चाहे वह महमूद गजनवी हो या फिर तैमूर। लेकिन इसके लिए भी मुसलमान समाज ने कभी भी माफी नहीं मांगी।
आप सोंच रहे होंगे कि मैं एक सांप्रदायिक व्यक्ति हूं। लेकिन यकीन मानिए, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था तो मैंने खुद अपने कॉलेज में `War, Terrorism and Jihad' पर एक सेमिनार करवाया था। उस वक्त दिल्ली में वार तथा जिहाद को लेकर पोस्टरबाजी करने पर दिल्ली पुलिस की तरफ से रोक लगी हुई थी, लेकिन उस समय भी हमने यह कर दिखाया था। कुछ पुलिस वालों से तू-तू, मैं-मैं भी हुई। मैं यह सब सिर्फ इसलिए लिख रहा हूं कि आप इस पर एक बार सोंचे और अपनी बात कहें। मुस्लिम समाज कि इस असहनशीलता का विरोध करना ही चाहिए। जिस प्रकार हिन्दुओं को समझने की जरूरत है कि मुसलमान भी इस देश के निवासी हैं हमारे भाई हैं, यह बात मुसलमानों को भी समझनी पड़ेगी कि हिन्दु उनके भाई हैं। अगर वे इस प्रकार की असहनशीलता दिखाएंगे तो देश का भला कतई नहीं होगा।
ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा, कौन है जो आग लगा रहा है
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ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा है,
इंसानियत को लहूलुहान कर रहा है।
ये कौन है जो आग लगा रहा है।
दुकानों ही नहीं भाईचारे को भी जला रहा है।
क्यों सड़कों पर बिखरा...
4 वर्ष पहले