शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

सरकार आपकी, अदालतें आपकी और मीडिया भी आपका

यह पंक्तियां अक्सर उस तबके के लोगों द्वारा कही जाती रही है जिन्हें देश के मिजाज के साथ तालमेल बिठाने का मौका ही नहीं मिला। सरकार बनाने के लिए वह जाति, धर्म, संप्रदाय में बंट कर वोट बैंक बने या जो इन खांचों में नहीं समाए वे पैसे पर खरीदे गए। अदालतें जो न्याय के मंदिर कहे जाते हैं यह संयोग है या कुछ और कि अधिकतम सजा पाने वाले इसी तबके से आते हैं। यहां तक कि पिछले कुछ सालों में जिन लोगों को फांसी दी गई वे इसी तबके से ताल्लुक रखते हैं। यह कोई मेरा आकलन नहीं है बल्कि देश के मिसाइल मैन कहे जाने वाले और देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के हैं। अब इस क्रम में मीडिया भी खुलकर सामने आ गया है जहां वह पक्षपात करता दिख रहा है। ताजा उदाहरण है मुंबई के कैंपा कोला सोसाइटी के तोड़े जाने का।

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

न मिटी गरीबी और न रहे गरीबों के 'रहनुमां' लालू

"इधर के लोग आंकड़ों की बात करेंगे और उधर के लोग भी आंकड़ों की बात करेंगे, लेकिन मैं आंकड़ों की बात नहीं करूंगा बल्कि गरीब गुरबों की बात करूंगा जो मंहगाई के बोझ तले दबा जा रहा है" कुछ इसी अंदाज में लोकसभा में बीच की पंक्ति में खड़े होकर गरीबों की राजनीति करने वाले लालू ने अपने दोनों तरफ बैठे सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के नेताओं पर वार किया था। लेकिन विडंबना देखिए उसी लोकसभा में तथाकथित बहुसंख्यक गरीबों के राजनेता लालू अब नहीं दिखेंगे। चारा घोटाले में पांच साल की कैद होने के बाद अब वह अगले 11 सालों तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। तो क्या यह गरीबों की हार है या गरीबी का मजाक है?