भारत जैसे देश में जहां खेल का मतलब क्रिकेट, क्रिकेट और क्रिकेट तक ही सिमट कर रह जाता है ऐसे में अन्य खेलों की दुर्दशा पर अफसोस जाहिर करने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता। हाल ही में संतोष ट्राफी का ही उदाहरण ले लीजिए। पहले तो इस आयोजन को करने में ही परेशानी हो रही थी। जैसे-तैसे इंतजाम के बाद इसका आयोजन तो हुआ लेकिन खिलाड़ियों की दुर्दशा के बारे में अगर आप जानेंगे तो आप स्वतः ही समझ जाएंगे कि उनके लिए खेलना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।
इस आयोजन के लिए खिलाड़ियों को जो दैनिक भत्ता आल इंडिया फेडरेशन की तरफ से दिया गया वह महज 400 रुपये प्रतिदिन था। जिसमें खाना और रहना सभी शामिल था। इसके ऊपर 100 रुपये का पॉकेट मनी स्टेट एसोसिएशन की तरफ से दिया गया।
अब इस आधार पर देखिए कुछ टीमों की स्थिति। कर्नाटक की टीम जो कि जम्मू-कश्मीर में डल झील के पास सलीम गेस्ट हाउस में रुकी, उसका किराया 1000 रुपये प्रतिदिन था। एक रुम में चार-चार खिलाड़ी रुके जिसमें टीम के हर खिलाड़ी का 250 रुपया रहने में ही गया। उसके बाद खाना और अन्य जरुरतें अलग। इसके साथ-साथ अगर लांड्री का प्रयोग करना हो तो उसके लिए अलग से भुगतान करना पड़ता था। जाहिर है खिलाड़ियों ने खुद ही अपने कपड़े धोने का विकल्प चुना।
अब केरल की टीम का दुखड़ा सुनिए। केरल की टीम ताज होटल में रुकी। वहां किराये के अलावा सिर्फ लंच ही मुफ्त मिलता था। इसके अलावा नाश्ता और डिनर अपने पैसे से करने की खिलाड़ी सोंचने की स्थिति में ही नहीं थे। क्योंकि ताज का डिनर 400 रुपये प्रतिदिन के पैसे के हिसाब वाले व्यक्ति के लिए सोंचना भी जुर्म है।
अब इन खिलाड़ियों के सफर के बारे में भी जान ही लीजिए। केरल और कर्नाटक की टीम को जम्मू पहुंचने में ही तीन दिन लग गए। आप समझ सकते हैं दक्षिण भारत के एक छोर से उत्तर भारत के दूसरे छोर तक ट्रेन से जाने में कितना समय लगेगा। तीन दिन में जम्मू पहुंचने के बाद फिर उन्हें 12 घंटे का बस का सफर करना पड़ा। वहां से भी उन्हें हवाई सेवा मुहैया नहीं करवाई गई। जबकि फेडरेशन अगर चाहता तो इससे बेहतर बंदोबस्त किया जा सकता था।
यह हालत तो तब है जब एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए ये खिलाड़ी शिरकत करने जा रहे थे। सोंचिए इनको बाकी दिनों में कैसी सुविधा दी जाती होगी। यह हालत सिर्फ फुटबॉल की ही नहीं है, यह हालत हॉकी समेत सभी खेलों की है। ऐसी स्थिति में भी किसी प्रतियोगिता के दौरान हमें अपनी टीम से विश्व स्तर का प्रदर्शन चाहिए। उस वक्त हमें यह याद नहीं आता कि बिना किसी सुविधा के ये खिलाड़ी सिर्फ जज्बातों की ताकत से ही हर तरह से संपन्न विदेशी टीमों से लड़ते हैं, और जब लड़ते हुए परास्त होते हैं तो पूरा देश उनकी आलोचना में खड़ा हो जाता है। कोई यह नहीं सोंचता कि आखिर उनकी यह हालत क्यों है।
पिछले दिनों हॉकी को लेकर बड़ा बवाल हो गया। हॉकी फेडरेशन के उस समय के अध्यक्ष केपीएस गिल को भी हटना पड़ा। उनको हटना ही चाहिए था। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यह समस्या का निदान नहीं है। हमें अपने खिलाड़ियों के लिए बेहतर व्यवस्था करनी होगी। बेहतर कोचिंग फैसीलिटी, बेहतर इंतजाम तथा बेहतर भत्ता। ताकि किसी खिलाड़ी को अपना ओलंपिक मैडल न बेचना पड़े।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि हॉकी क्रिकेट से अधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन यह कह भर देने से नहीं होता। बेहतरी के लिए कदम उठाना होगा। क्रिकेट ने जो मुकाम हासिल किया है वो उसने अपने प्रदर्शन की बदौलत हासिल किया है। एक आटोनोमस बाडी के रूप में बीसीसीआई ने इतना प्रोफेशनलिज्म अपने काम में लाया, उसी का नतीजा है कि आज क्रिकेट ने यह मुकाम हासिल किया है।
अगर देश में अन्य खेलों को भी बढ़ावा देना है तो इसके लिए बयान की बजाय सरकार को चाहिए कि वह अन्य खेलों की नीतियों में व्यापक सुधार करे। अन्य खेल फेडरेशन के कामकाज में ट्रांसपैरेन्सी लाए। ऐसा न हो कि एक ही व्यक्ति किसी फेडरेशन का अध्यक्ष वर्षों से बना रहे।
इस वक्त मुझे कुछ लाइनें याद आ रही हैं जो मेरे कॉलेज की एक लड़की ने लिखा था -
रख तू राह पर दो-चार ही कदम मगर जरा तबीयत से,
कि मंजिल खुद-ब-खुद तेरे पास चलकर आएगी।
ऐ हालात का रोना रोने वालों,
मत भूल कि तेरी तदबीर ही तेरी तकदीर बदल पाएगी।।
ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा, कौन है जो आग लगा रहा है
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ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा है,
इंसानियत को लहूलुहान कर रहा है।
ये कौन है जो आग लगा रहा है।
दुकानों ही नहीं भाईचारे को भी जला रहा है।
क्यों सड़कों पर बिखरा...
4 वर्ष पहले
4 टिप्पणियां:
Yakeenan Hockey hamara rashtriya khel hai. Par jis cheez ki maang khatam hoti hai woh cheez bhi khatam ho jati hai.
Hum hockey ka peek touch kar chuke hain. Humne is baat ko granted kiya ki hum hockey mein best hain isliye is par dhyaan dena bandh kiya nateeja apke saamne hai.
Yahe haal Wrestling ka bhi hai.
Aaj jo aap Cricket ka roop dekh rahen hai woh kai saal ka natija hai.
Ab aisa maana ja raha hai Cricket bhi peek par hai kuch saloon mein aap dekhenge ke yeh khel bhi khatam ho jayeega.
Cricket mein paisa isliye bhi adhik hai kyunki yeh Gentelmen's Game hai. Ise Angreez khelte the, Indian Raja's ke baad dheere-dheere aam janta ne ise apnaya.Iski Shuruat ameer logon se hui isliye iski tarakki hui.
Rahi baat aur kheloin ki Jab thak rajnaitik icchashakti na ho inka bhala nahin ho sakta.
भाई बात तो आप सही कर रहे हैं...जरूरत बयानबाजी से हटकर कुछ करने की है....लेकिन ये देश अब भारत नहीं रहा इंडिया हो गया है....सो काम कम और प्रोपोगेंडा ज्यादा होता है.... खैर, प जैसे लोग यदि आवाज उठाते रहे तो क्रांति जरुर आएगी.....
आपके ब्लॉग पर चर्चे के विषय अच्छे हैं....मेरी तरह अन्य लोगों को भी आपका ब्लॉग पसंद आना चाहिए......
Aap ne jo sacchchai bayaan ki hai, hamari sarkaar aur gill saahab bhi usse waakif hain! Mujhe ab bas unke liye ek hi shabd yaad aa raha hai...is sthithi ka vivran karne ke liye - behuda! Sabse badi sharm ki baat hai ki itna kuchch hone ke baad, hamari sarkaar un khiladiyon ke liye kuchch nahi kar rahi hai...aisa lagta hai ki Sarkar ne contract le rakhkha hai ki woh sirf aur sirf cricketers ko support karenge...jaise doosre khelon ke khiladi bevakoof the jinhone us khel ko chuna! Duniya bhar mein dhindhora peette firte hain ki hamare paas paisa nahi hai hai in khelon ke liye aur IPL jaise tournament mein bas paise hi fenke gaye...Yeh sharm ki baat hi to hai ki Bharat jaisa 'khel' desh duniya bhar mein football jaise khel mein 18oth RANK par hai! Hum sochte antar-rashtriya star par hain - par facilities desi sey bhi battar hai! Iske baad kya hum Olympics jaise mahaan antar-rashtriya khel aayojit karne ke layak bhi hai....Zara gaur kijiyega!
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