सोमवार, 16 जून 2008

वाह री मीडिया



जैसा कि आप देख रहे हैं। इस नरकंकाल को देखकर आप स्वतः ही अनुमान लगा सकते हैं कि यह कितना बड़ा कंकाल होगा। खबर के अनुसार दक्षिण भारत में सेना क्षेत्र में यह कंकाल मिला है। कल एक टीवी चैनल ने इसको बहुत देर तक दिखाया भी और कहा की यह महाभारत में वर्णित भीम का पुत्र घटोत्कच्छ का कंकाल है।



मैं आपका ध्यान कुछ चीजों की ओर आकर्षित करना चाहता हूं-

1. यह इमेज `वर्थ 1000' से उठाया गया है। इस साइट पर अलग अलग तरह के डिजिटल फोटो को अप इडिट करके अपलोड कर सकते हैं। इस इमेज को वहीं से उठाया गया है।


2. जैसा की खबर में कहा गया है कि इसकी खोज नेशनल ज्योग्राफी की टीम ने आर्मी एरिया में किया है लेकिन अब तक न तो आर्मी ने और न ही नेशनल ज्योग्राफी की टीम ने कुछ आधिकारिक बयान दिया है।

3. मानव आकृति के हिसाब से यह मानने योग्य है ही नहीं। ऐसा इसलिए कि मानव के इतना अधिक समझदार जीव बनने के पीछे एक प्रमुख कारण उसका आकार भी है। बड़े आकार के जीवों की मस्तिष्क क्षमता इतनी बढ़ ही नहीं सकती जितनी की मानव की है।




देखिए कुछ डिजिटल फोटो का नजारा-


1.




एक आंख वाला इंसान, देखा है कभी आपने। अगर टीवी चैनल इसी को एक न्यूज बनाकर आपको कल दिखा दें तो हैरान मत होइएगा।
2.



एक नजारा यह भी देखिए। छोटे से गोलाकार आकृति में बच्चा। कल को इसे लिलिपुट से मिला अवशेष बताया जा सकता है।

मीडीया पर सवालः

सवाल यह उठता है कि आखिर मीडिया किस ओर जा रहा है। टीआरपी रेटिंग के पीछे दौड़ता मीडिया शायद भूल गया है कि उसकी समाज के प्रति भी कुछ जिम्मेवारी है। न्यूज के नाम पर लोगों के सामने अंधविश्वास, जादू टोना, मानवता को छिन्न-भिन्न करने वाले ऐसी खबरों को दिखाकर मीडिया क्या दिखाना चाहता है।

कब तक मीडिया टीआरपी के लिए लोगों को बरगलाती रहेगी। अपना एक स्टैडर्ड तो सेट करना ही चाहिए। अगर नहीं तो ऐसा कहने का कोई हक नहीं कि मीडिया समाज ऐसा बुद्धिजीवी समाज है जो समाज को आइना दिखाता है। मुझे तो लगता है कि आज की मीडिया आइना नहीं अपने मतलब का चश्मा लोगों को पहनाता है। यह भारतीय संस्कृति रही है कि हम बहुत अधिक विश्वास करते हैं, लेकिन जब विश्वास टूटता है तो फिर किसी पर विश्वास नहीं करते। मीडिया को ध्यान रखना चाहिए कि कहीं लोगों का विश्वास ही न उठ जाए। इसलिए मीडिया भालू आया.....भालू आया...करना छोड़े।

2 टिप्‍पणियां:

sunil ने कहा…

भाई, जो मुद्दा आप उठाए हैं, वह असल में सिरदर्द बनता जा रहा है। चैनलों की मारामारी में खबरों की जो गत बनती जा रही है, उससे सभी जागरूक लोगों में चिंता व्याप्त है। हाल के दिनों में तो अति हो गई है। कभी राम को खोज लिया जाता है, तो कभी प्रलय की पूर्वसूचना दे दी जाती है, तो कभी साईं बाबा की मूर्ति को बोलते हुए दिखाया जाता है। इतना ही नहीं हिंसा और अश्लीलता का बोलबाला चैनलों पर इतना बढ़ गया है कि कई बार तो परिवारवालों के सामने झेंपना भी पड़ जाता है। यह 'अपने मुंह मियां मिट्ठू' बनने वाली बात नहीं है, लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ एक चैनल ने ही वास्तविक पत्रकारिता को थाम रखा है, बाकी तो सब पता नहीं किस अंधी दौड़ में शामिल हो गए हैं। इस पर तो पूरी शृंखला में लिखने की जरूरत है।

नितिन माथुर ने कहा…

Chamatkar ko Namaskar hai.
Asl mein har aadmi apne jeevan mein Chamatkar chahta hai. Media is gunjaish ko bhuna raha hai.
Joh kam cinema ko karna chahiye woh media kar rhi hai. Yeh sharmnaak hone ke saath saath ghatak bhi hai. Aaj zamane mein jahan Sachaai mar rahi hai wahan media bhi is tarah ki baazigari karne laga to Bhagwaan hi Malik hai ( Agar Bhagwaan Kahin hai To).