हाय रे बॉलीवुड, पैसे की चमक-दमक और पश्चिमी सभ्यता के चकाचौंध में हमारे बॉलीबुड के सितारे इतनी खो गए हैं कि उन्हें यह तक पता नहीं कि कहां है बापू का समाधि स्थल राजघाट। जी हा शाहरुख खान की पांचवीं पास में आए सफलतम अभिनेत्रियों में मानी जाने वाली रानी मुखर्जी से जब पूछा गया कि राजघाट कहां है तो वह बगलें झांकतीं नजर आईं। उनके साथ आए करण जौहर ने तो कहा कि उन्होंने मधुर भडारकर की फिल्म में देखा था, शायद यह नई दिल्ली में है। आपको लग सकता है कि यह बहुत ही साधारण बात है। आप सोंच रहे होंगे कि हो सकता है कि जेनरल नॉलेज कमजोर हो। लेकिन अगर ऐसा है तो उन्हे यह भी पता नहीं होना चाहिए कि एफिल टॉवर कहां है। लेकिन ऐसा नहीं होगा।
आज फिल्मी दुनिया की हस्तियों को अपने देश से अधिक विदेशी चीजें पसंद है। फेवरेट एक्टर पूछिए तो कोई विदेशी कलाकार का नाम सुनने को मिलेगा, फेवरेट शूटिंग डिस्टेनेशन भी विदेश ही, फेवरेट रायटर भी विदेशी ही, चाहे भले ही वे यह नहीं जानते हों कि प्रेमचंद कौन हैं। एक बार जब मैं कॉलेज में था तो पाकिस्तान टूर का प्लान कॉलेज की तरफ से बना। हमलोग बड़े खुश थे। हमारे एक प्रोफेसर ने क्लास में कहा कि आपलोगों में से कितनों ने राजगीर देखा है। मुशिकल से 4-5 हाथ उठे होंगे। उन्होंने कहा कि पहले अपने देश को जानों। अब समझ में आ रहा है कि उनहोंने कितना सही कहा।
इसी प्रोग्राम में जब रानी से हिन्दी में पूछा गया कि 47 को क्या कहते हैं तो उन्हें 70 नजर आ रहा था। जब देश के राष्ट्रपिता के बारे में ही जिसको जानकारी नहीं हो तो उससे हिन्दी के बारे में आशा करना शायद बेवकूफी होगी। एक बार बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन से जब पूछा गया कि आप अपने बेटे को सफल होने के लिए क्या सलाह देना चाहेंगे तो उन्होंने कहा था कि वे जब भी बोलें हिन्दी में बोलें। क्योंकि हमारे अधिकतर दर्शक हिन्दीभाषी ही हैं। इससे दर्शक जुड़ाव महसूस करते हैं। आज बॉलीवुड के अधिकतर सितारे इंग्लिश में ही बात करते हैं चाहे भले ही उनसे हिन्दी में सवाल पूछा जाए।
अंग्रेजियत की चकाचौंध में खोया हमारा बॉलीवुड अगर ऐसी फिल्में बनाता है जिसका समाज से कोई सारोकार नहीं होता तो क्या गलत है? यह चर्चा अब पुरानी हो चुकी है कि अब फिल्मों और टीवी पर भी आम आदमी गायब हो गया है। इसलिए मैं इसपर कुछ ज्यादा नहीं लिखूंगा। वैसे भी आज अंग्रेजीदार मॉल संस्कृति में तो आम आदमी घुटन महसूस करता है। उसके लिए तो वही गांव के चौक पर पान की दूकान, सस्ती सी सुपाड़ी और चमकीले भड़कीले कपड़े। उसी में हैं वे खुश। लेकिन बॉलीवुड को अपनी जिम्मेवारी समझनी होगी। समाज की बेहतरी के लिए बॉलीवुड की भी कुछ जिम्मेवारी बनती है। लेकिन रानी मुखर्जी और करन जौहर जैसे लोगों से मुझे कोई आशा नहीं है।
पाश्चात्य जगत में जब आधुनिक युग का प्रवेश हुआ तो उससे पहले अंधकार युग था। उस समय का यूरोपीय समाज शायद इतना रुढिवादी था जैसा भारतीय समाज भी कभी नहीं था। वहां आधुनिकता की बयार बही। यह बयार ग्रीक फिलॉसोफी में छिपी हुई थी। उन्होंने उसी को अपनाया। ग्रीक साहित्य में वो सबकुछ था जो एक समाज को आधुनिक बनाने के लिए आवश्यक हैं। स्वतंत्रता, समानता, साइंटिफिक टेम्परामेंट। यूरोपीय समाज ने उसको अपनाया। उन्होंने इसके लिए किसी दूसरे का अंधानुकरण नहीं किया। लेकिन हम कुछ और ही कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारी सभ्यता में ये सभी तत्व नहीं है। लेकिन हमने उसे अपनाया ही नहीं।
ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा, कौन है जो आग लगा रहा है
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ये कौन है जो पत्थर फेंक रहा है,
इंसानियत को लहूलुहान कर रहा है।
ये कौन है जो आग लगा रहा है।
दुकानों ही नहीं भाईचारे को भी जला रहा है।
क्यों सड़कों पर बिखरा...
4 वर्ष पहले
11 टिप्पणियां:
Rani ko shayad nahin pata ki Rajghat kahan hai magar kya Dilliwale jaante hain Dilli ki shikanji mashhoor hai? shayad nahin kyunki aysa kuchh hai hi nahin. Kisi baat ka pata hona ya na hona is baat nirbhar karta hai uske liye hum kitna dhyaan rakhte hain. Mere vichaar mein Rani ko ye nahin pata ki Rajghat kahan hai magar usko pata hai ki uski kaun si ada pareshan, dukhi, aur nichle warg ke darshako ko achchi lagti hai, yahi wajah hai ki vo aaj bhi number one hai.
अफसोस और शर्म की बात है। ये फिल्मी कलाकार तो लगते हैं कि हमारी मिट्टी से बने ही नहीं है, कमाई खाते हैं हिन्दी फिल्मों से और सोच ब्रितानी। सीधे शब्दों में कहें तो यह तो दोमुंहापन है इन कलाकारों का। हम तो यही कहेंगे जो लोग इन नचैये गवैये को लेकर फैंटेसी पाले रहते हैं, उनकी आंखें खुल जानी चाहिए और इन लोगों को देवता जैसा सम्मान देना छोड़ देना चाहिए। असली जाहिल और गंवार तो ये सितारे हैं, जिन्हें राष्ट्र और राष्ट्रपिता के बारे में छोटी-छोटी चीजें नहीं पता हैं। धिक्कार है रानी तुमको...
Ek purani kahawat hai ki Kallakaron ko door se dekhna chahiye.
Kyoinki hum jo dekhte hai woh script mein likha hota hai.Rani agar kisi sawaal ka jawab nahin de pai to woh script mein likha hoga.
TV ya cinema mein kisi ko dekh kar uske baare mein vichaar nahin banaya ja sakta. Yeh wo chavi hai jo media me dikai gai hai.
Rahi baat vidoshon ki. Jab aap videsh ho kar aate hai to aapka dimaag khulta hai.aap un cheezon ko samajhna shuru kar dete hain jinke bare mein aap jante bhi nahin the.
Kya kisi cheez ko sirf isliye bura kehna chahiye kunki woh hamari nahin? agar kisi aur ka ghar hamare ghar se khoobsurat hai to imaandari se nahin maan lena chahiye.
Har insaan ka apna background hota hai jis se uska dimaag badta hai. Bachpan mein aap jin cheezon ke liye jaan dete the ab voh bevkufi lagti hai ka yeh bhi deemagi vikas ke hissa nahin hai?
Film Roti mein ek gaana hai 'ye public hai...'. is gaane ki ek line ye bhi hai "kya neta kya abhineta de janata ko jo dhokha". Rani ke baare mein padhane ke baad aisa lag raha hai ki gaane ki wo line charitaarth ho gayee. Mujhe nahin lagta ki Rani Mukharji aur Karan Jauhar jaise logon ko 26 Jan,15 Aug aur 2 Oct. ke baare mein bhi pata hoga. Fir Rajghat to bahut badi baat hai. Kahne ke liye ye log India ke stars hain lekin mere hisaab se inke liye paisa hi bhagvaan hai baaki desh aur deshbhakti jaise shabd bemani hain.
Great Sujeet. What a thinkng mind have you had! Normally, people don't care about who know what and whatn't, if do, they laugh at and proceed but never bother to think upon. But you thought and tried to attract people's attention to our Sitare's awareness level who we idolise and have fantacies about, as Sunil ji has mentioned in his aritcle. May the almighty give you more penatration to bring more issues to our notice. Thanks
Umanath Singh
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aap sab logo ka kahna thik hai ki rani ko nahi pata ki raajghat kaha hai , per mai janta hu ki raaj ghat kaha per hai , dosto ho sake to rani tak mera sandesh pahuchandea ki kamal usko dikahdega ki raaj ghat kaha per hai delhi mai, kamal ke saaht chale uski bike per, kyo ki kafi dino se koi ladki uski bike ki pichli set per nahi bethi.
very good and apt
kamana
thats really true!! pata hai aaj kitne mantri hain jinhe hamara rashtriye gaan nahi aata!!! aur kitne hi aise bhartiye naagric hain jinhe apne desh k pradan mantri aur rashtriyepati ka naam tak nai pata.Yeh ek buri baat hai pur isse theek karne k lie hamein jaaruk hona padega!Aur aisa karne me media bahot sahyoog kar sakta hai!
swatantrta divas pur T.V pur in mantrin ko rashtriye gaan gavana chahiye aur logon ko desh ki haalat dikhani chahiye. isse desh jald badlega aur bharat k lie jaagrukta aur badhegi!!
Rani ka is mahatvapurna jaankari se nawakif hona sachmuch sharmnak hai.Bharatiya film udyog aj tak kai aisi filme la chuka hai jo Gandhi,krantikariyon ,ya rashtra prem par adharit hain aur ye filme lokpriya bhi rahin.Rani khud bhi Mangal Pande jaisi film me kaam kar chuki hain.Aur kuch nahi to har 15 August ya 2 October ko har channel pe hum Gandhi ya unke samadhi sthal ko dekh sakte hain.Iske bawjood Rani ya kisi anya wyakti ka is baat se anbhigya hona sachmuch widambana hai.
jab sharmsaar hone ki baat chali hai to hum 'janata' bhi zara apne upar nazar daal len.hum me se kitno ko pata hai k jhande me rango ki shreni kya hai?ya kitno ko pata hai ki bharat me kitne rajya hai?hum sab in baaton ko G.K books ki samagri samajh kar, jiski hamari dincharya me koi aawashyakta nahi,bhool jate hain.Aur yahi anbhigyata jab hamare lokpriya log dikhate hain tab hum naare lagate hain.isliye hum samanya logon ko bhi thoda jagruk hona chahiye.
rani aap se ye ummid nahithi
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